क्या हुआ क्यों हुआ ,आंख नम हो गयी /
मेरी थाली की रोटी क्यों कम हो गयी/
तज दिया दाल ने थाल, को क्या करें
अब तो लगता की रोटी मयस्सर नहीं,/
राज रोगी सा बनना है मजबूरियां ,
मेरी प्याली है खाली चीनी घर में नहीं /
फल- फूलों की चर्चा तो अपराध है ,
साग-भाजी भी अब तो सपन हो गयी /
ब्याधीशाला बना तन कुपोषित हुआ,
अन्न के बिन प्राणायाम होता नहीं /
अस्पतालों में जाएँ कहाँ हौसला ,
दाम के बिन वंहा काम काम होता नहीं /
बेचा गुर्दा, जिगर,खून ,खुशियाँ,सभी,
मेरी अर्थी भी अब,बेकफन हो गयी /
बढती महंगाई सुरसा के मुंह की तरह
बढ़ रहा है कदाचार क्यों इस तरह /
महँगी शिक्षा ,सुरक्षा व् उपचार में
एक मानव जिए तो जिए किस तरह/
कार .कोठी,मधुशाला का बढ़ता शिखर
दाल- रोटी की आशा दफ़न हो गयी /
पुत्र कहता पिता से अपनी दुस्वारियां ,
शुल्क,पुस्तक बसन तात दे दिजीये /
बापू खांसता नित ,दमा है उसे ,
अधखुला तन ,लुगाई का मत देखिये /
रब से माँगा नहीं राजशाही ,कनक
उदय जिंदगी क्यों सितम हो गयी /
उदय वीर सिंह
mailto:वीर.ji.@live.com
१०/१०/२०१०.
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