शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

तपन

क्या हुआ क्यों हुआ ,आंख नम हो गयी /
मेरी थाली की रोटी क्यों कम हो गयी/
तज दिया दाल ने थाल, को क्या करें
अब तो लगता की रोटी मयस्सर नहीं,/
राज रोगी सा बनना है मजबूरियां ,
मेरी प्याली है खाली चीनी घर में नहीं /
        फल- फूलों की चर्चा  तो अपराध है ,
         साग-भाजी भी अब तो सपन हो गयी /
ब्याधीशाला  बना तन कुपोषित  हुआ,
अन्न  के बिन प्राणायाम होता नहीं /
अस्पतालों में जाएँ कहाँ हौसला ,
दाम के बिन वंहा  काम काम होता नहीं /
          बेचा गुर्दा, जिगर,खून ,खुशियाँ,सभी,
          मेरी  अर्थी भी अब,बेकफन हो गयी /
बढती महंगाई सुरसा के मुंह की तरह
बढ़ रहा है कदाचार क्यों इस तरह /
महँगी शिक्षा ,सुरक्षा व् उपचार में
एक मानव जिए तो जिए किस तरह/
          कार .कोठी,मधुशाला का बढ़ता शिखर
           दाल- रोटी की आशा दफ़न हो गयी /
पुत्र कहता पिता से अपनी दुस्वारियां ,
शुल्क,पुस्तक बसन तात दे दिजीये  /
बापू खांसता नित ,दमा है उसे ,
अधखुला तन ,लुगाई का मत देखिये /
          रब से माँगा नहीं राजशाही ,कनक
          उदय जिंदगी क्यों सितम हो गयी /

                           उदय वीर सिंह 
                           mailto:वीर.ji.@live.com
                             १०/१०/२०१०.

          

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