गुस्सा है ,गम है ,प्यार गया /-----
मंदिर-मस्जिद अब आफिस हैं ,
नर रहता ,भगवान गया /------
दंभ ,द्वेष ,प्रतिशोध, घृणा ,
बन गए हमारे संघारक /
पथ्यर सा बनता गया हृदय ,
मानवता की धरा नादारद /
कोई किसे सुनाये ?सब बहरे हैं ,
प्यार घृणा से हार गया /-----
मंदिर ,मस्जिद ,गुरूद्वारे ,
किसलिए ?बनाये जाते हैं ?
हर शाम -सुबह की बेला में ,
सिर किसे झुकाए जाते हैं ?
आलोक ,शिखर, धरा की ,
किसनें रचना की होगी ?
क्या रचनाकर्ता के सम्मुख ?
सत्ता और किसी की होगी ?
ये नासमझ भटके मद में ,
उस इश्वर को नकार गया /
बसुधैव-कुटुम्बकम भूल गया ,
जल रही है सारी मानवता /
प्रथम धर्म ,गौड़ है मानव ,
निष्ठुर ,अग्नि में नित जलता /
ज्वाला तो खाक बना देगी ,
पगड़ी ,टोपी तिलक ,जनेऊ को /
कौन पायेगा खुतबा -ख़िताब ?
जब जीव ना होगा रहने को ?
सर्व - प्रथम हम मानव हैं ,
ये तथ्य कैसे नकार गया /------
तुम कैद करोगे परमेश्वर ?
जिसका कोई आकार नहीं /,
वह सबका पालन -कर्ता है ,
उसको बंधन स्वीकार नहीं /
बाँट सके ना ,कृपण बने ,
जो सरल-सुलभ, था मनभावन /
बस प्यार की गंगा ले आते ,
शापित सदिंयों के,होते पावन /
कण-कण में बसता निरंकार ,
क्यों करते अपमान यहाँ ?
निखिल- विश्व का संरक्षक,
दाता को देते दान यहाँ /
गृह ,कलश ,छत्र,आसन सोने का ,
सब तेरा बेकार गया /----
उदय वीर सिंह .
२३/१०/२०१०.
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