बिखरी आभा ,स्नेहिल आँचल ,
कृतज्ञ हृदय , आभार प्रिये ----------
सुन्दर सृजन , समभाव, संवेदन ,
पाया तेरे द्वार प्रिये ---------
ललित काव्य सा ,मधुर निवेदन ,
अंतर्मन की अभिलाषा /
प्रखरित शुभ, का मंचन कर दे ,
विनय -शील शुभ की भाषा /
निश्छल ,निर्भय ,निर्मल, आवेदन ,
शंशय- हीन , संसार प्रिये ----------
अन्तः मन उद्वेलित , हर -पल ,
ना हो निर्माण विषम- पथ का /
उल्लास सृजित ,प्रति रोम -रोम
अस्तित्वहीन - पथ , शंशय का /
नित्य -प्रतीक्षित चद्र- प्रभा नित ,
खोले शुभ, के द्वार प्रिये ----------
कर्ण -प्रिय , ध्वनित , मृदु , गुंजन ,
सिंचित - मन , भीगा सावन /
नीरवता में मंत्र , ग्रन्थ सा ,
बिखरित हो करता पावन /
कोलाहल-हीन -क्षितिज ,आराधन ,
अर्पित स्वच्छ ,संसार प्रिये , --------
मूक - देवालय , वंदन , स्थल ,
श्रद्धा, विस्वास , वस् शीश नवे /
आलंबन , अंक ,प्रेम , झर -निर्झर,
तो , देता तेरा आँचल, सफले !
देते छोड़, मूर्त को कैसे ,!
अमूर्त नहीं स्वीकार प्रिये ----------
मुक्त -कंठ , से गीत , प्रवाहन ,
उदय , पुष्प, संग प्यार प्रिये --------
उदय वीर सिंह
१७/११/२०१०
1 टिप्पणी:
देते छोड़, मूर्त को कैसे ,!
अमूर्त नहीं स्वीकार प्रिये
मुक्त -कंठ , से गीत , प्रवाहन ,
उदय , पुष्प, संग प्यार प्रिये ..
bahut sundar rachna.
.
एक टिप्पणी भेजें