रविवार, 14 नवंबर 2010

** सेवक सेवा साज रहे **

  प्रणाम !
हो स्वीकार !
सतत  लीन,  सेवा में ,बाँटने को प्यार /
तलाशता  ठौर ,देने को सलाह  ,
मैं सेवक !
राजनीती का ,समाज का ,मानव  मात्र का  ,
समझ लीजिये यों --
हम आपके  ! हैं कौन ?
सेवक  , बिन पगार का  ------------
देता हूँ सेवा  ,बिन बुलाये  पहुंचता  हूँ ,वक्त बे-वक्त ,
विभाग हैं मेरे पास अन्नंत  !
मुख्यतः -----
भ्रस्टाचार ,व्यभिचार ,कदाचार ,अत्याचार ------
मूलतः दूर रहता हूँ ,सभ्याचार से /
यह क्षेत्र महफूज नहीं ,चुम्बकीय होता है  /
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करता हूँ सहयोग विकास में ,
मध्यस्थता कर देता हूँ ,अफसर ,ठेकेदार में  ,
दोनों का प्रिय ,मिलता है अनन्य सहयोग ,दोनों से  /
नादान , नशा-खोर ,अभिजात्य बच्चे ,भटक जाते हैं  ,पकडे जाते हैं  ,
होटलों में ,बारों में ,कोमल हृदय  ,
मध्यस्थता कर ही  देता हूँ ,रक्षकों ,संरक्षकों ,  संचालकों में  ,
मिलता है , प्रेम अनन्य  उनसे  /
सुई  से लेकर जहाज  ,सब उपलब्ध  ,बिन प्रयास  /
स्कूटर  से भैंस , जाती बिहार ,
पैसेंजर ट्रेन  ढोए मॉल ,क्या कमाल !
आबंटन प्लाट का  ! आवास का /
३-जी स्पेक्ट्रम ,खाद्य , पी.यफ , दूर- संचार ,
खेलों में खेल!  रेल , रक्षा ,में तेल !
 --का रिसाव हो गया   /-----
दुखद !
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सेवक उपलब्ध ,
सफाई आवश्यक  /
 क्या होता ! इस देश का रे बाबा ! सेवक जो ना होते ?
बढ़ता अत्याचार ,नौकरशाह,  बे- लगाम !
पुलिस परेशान ,उजागर  में नहीं ,  छिपाने में  ,
हत्या , बलत्कार ,गबन  ,
केस  होते दफ़न  !
नौकरशाह -शहंशाह ,अकूत संपत्ति का मालिक ,
कर ,देते हैं / करते हैं मुझे उपकृत ------
क्यों कि !
जनता हूँ राज उनका ,सेवक जो ठहरा  !
 कोई आचार ,बिन मेरे  ,होगा न  विकसित  /----
  ------ सेवार्थ,  निवेदन  आपकी सेवा में  ----
कोई नियम ,उपनियम ,सेवक को  स्वीकार्य नहीं !
कोई कर गया कोशिश  अगर ,----
हड़ताल ,जाम ,आन्दोलन ,हिंसा भी स्वीकार्य !
विज्ञप्ति प्रकाशित होगी   -----क्षमा !" प्रतिक्रिया -वस् हो गया " ,
मेरा अपमान ,बंधन ! नहीं सह पाती  ,मेरी प्यारी जनता  /
करूँगा प्रार्थना , शांति  की ,   शंयम  की  उनसे  -----
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परिपक्व  पेड़  को काट , बनाने को मकान  ,
मांगी थी परमिट  ,एक साल पहले  /
आज तक  प्रतीक्षा-रत !
गया  सेवक के पास  ,
प्राप्त हो गयी अनुमति  दुसरे दिन ,
उनके आश्रम हेतु ,दो दरवाजे की शर्त पर  /
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जिन  करों ने , ना किया श्रम ,करते रहे सेवा , आजीवन !
बिडम्बना !
आज के सेवक-  कितने बड़े स्वामी  !
पगार देखो !
महल - अटार  देखो !
महँगी कार देखो!
अर्थ -संसार देखो!
आम- जन  का सेवक  ,वी.आई. पी. संसार  !
 हर यक्ष प्रश्न से दूर ,
 चुनौती !
 कहाँ है हमारा , नीति-निर्धारक तंत्र ?
कितना सुरक्षित लोकतंत्र !              

                                  उदय वीर सिंह
                                  १४/११/२०१०

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