गुरुवार, 6 जनवरी 2011

****निहारिका****

नीले व्योम  से  ,
निहारिका  का आगमन ,
लिए हजारों डिग्री  का तापमान ,
बरसाती अग्नि ,भाष्मित कर देने  को आतुर ,
सजी सुन्दर, ममतामयी   अचला, के  आँचल  को     /
अनियंत्रित भटके ,  छुद्र - पुंज ,
को शायद नहीं पता !
इस धरा ने झेले कितने प्रहार ,आघात 
समाहित हो गये  अनंत  युग ,सृश्ठियाँ /
अचल है आज भी ,   श्रृष्टि - समर्थ ,
 देने को   प्यार    /
,सजाती है नवल गीत ,  नव  सुर  निरंतर  /
अथाह   , सागर  जल -राशि  ,शीतल मलय ,
उद्दत रहते हैं , प्रतिरक्षा में सतत  /
कर्कस द्रूत्मान ,अवसाद    में  उतरती गयी ,
क्षरित  होती गयी,
शांत नीरव निलय में तिरोहित ,
हो गया शोर ,अनल  का ढूह ,
रक्त-पुंज सा तेज ,
निस्तेज ,तब्दील हो गया राख़ में   /
बिस्फारित नेत्र ,देख रहे थे ---
प्रचंड -रूप -निहारिका,----घटना क्रम --- ,
मेरी पुत्री ने कहा ----
पापा देखो -एक तारे का
दुखद अंत ........../ 

                                                        उदय वीर सिंह 
                                                        ०६/०१/२०११ 
 

   



कोई टिप्पणी नहीं: