हमने कहा उनको
हमने लिखा उनको
हमने सूना उनको ,
कितना अंतर है ,
कितना भ्रम है /
आरत मन में
विक्षोभ उत्पन्न ,
यूँ ही नहीं होता ,
सड़ांध आती है हमारी सहन शीलता ,
जब लाँघ जाती है
सीमाएं /
कायरता बनती है ,हमारी सहृदयता
सहजता ,
जब सुनने का बनते है यन्त्र ,
बजने का यन्त्र ,बनते ही ,
उठता है शोर ,गतिरोध /
विक्षोभ को शांत ,समाप्त करने का विकृत प्रयास
आकार लेता है /
मिटाने का प्रयत्न ,--रोगी को ,
रोग नहीं /
कहे जाते अनकहे कथ्य
आखिर तूं ,
पैदा ही क्यों हुआ ?
प्रोब्लम कहीं का /
उदय वीर सिंह
१४/०१/२०११
2 टिप्पणियां:
बहुत अच्छे व गहरे भाव लिए हुए आपकी यह रचना !
कायरता बनती है ,हमारी सहृदयता
सहजता ,
जब सुनने का बनते है यन्त्र ,
बजने का यन्त्र ,बनते ही ,
उठता है शोर ,गतिरोध /
जीवन के कटु सत्य का बहुत सटीक चित्रण..
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