गुरुवार, 26 मई 2011

एग्यारह करोड़

एक वहसी आत्मघाती
राह  से भटका
हत्यारा ,
मृत्य-दंड का अधिकारी ,
न्यायलय भी धन्य ,
प्राण -दंड देकर  /
अभिरक्षा में है ,संरक्षा में है ,
प्रतीक्षा में है ,
संवेदन-  हीन   को संवेदना की आस
पथ बंचक को पथ की तलास
मृत्यु दाता को  ,
जीवन की आस
आज भी  है  ,
विडम्बना है-----
एक   अभागी   कोख   का   किरायेदार  ,
खेलने   वाला  खून  की  होली  ,
वैर  की  ज्वाला  में  दहकता   ,
अंश  !
किसी अल्पजीवी  निहारिका  का   ,
जिसे  नापसंद   है    ----
     विकास ,मावता  ,शांति   सद्भाव
      दया  करुना  क्षमा  ,प्यार     ,
एक   सूत्रीय  लक्ष्य
विनास भारत  का !
जो  संभव  नहीं   ---
 साक्षी   है  युग ,दिग  -दिगंत
सदियाँ  ,ब्रह्माण्ड  ,
हर  काया  में  समाया  ,
 गुरुओं  का  अमृत  , खून  इस  माटी  का
हौसला  तो  देख  --
 एक  पतिंगे  को  भी   रखते  हैं
महफूज़   इतना   ,
बेजोड़
यही   है  हृदय  ,चरित्र   भारत  का   ,
शरणागत  को  न्योछावेर  कर  देते  हैं  ,
एग्यारह  करोड़   ------

10 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

सचमुच यह विडम्बना ही है हमारी व्यवस्था की अकर्मण्यता की..बहुत सार्थक प्रस्तुति..आभार

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

सार्थक रचना...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

यह क्षणिका भी बढ़िया रही!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

यह क्षणिका भी बढ़िया रही!

Rakesh Kumar ने कहा…

वाकई में 'आज भी विडम्बना है'
न्यायालय मजबूर,न्याय असहाय.
व्यवस्था ही ऐसी है.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आईये.नई पोस्ट जारी की है.
आपका इंतजार है.

दिवस ने कहा…

सच में हमारी व्यवस्था ही ऐसी है...कैसी विडंबना है ये...
संवेदन- हीन को संवेदना की आस
सार्थक पंक्ति....

Satish Saxena ने कहा…

वाकई विडम्बना ही है ...

Sunil Kumar ने कहा…

हम तो यही कहेंगे .. हमारी न्याय व्यवस्था को कोई नही जबाब , तभी तो मेहमान बना है अजमल कसाब
बहुत सार्थक प्रस्तुति..आभार.....

रचना दीक्षित ने कहा…

अजब विडम्बना है ये व्यवस्था. मजबूर ये हालात सब तरफ है. अच्छी पोस्ट.

बेनामी ने कहा…

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