एक वहसी आत्मघाती
हत्यारा ,
मृत्य-दंड का अधिकारी ,
न्यायलय भी धन्य ,
प्राण -दंड देकर /
अभिरक्षा में है ,संरक्षा में है ,
प्रतीक्षा में है ,
संवेदन- हीन को संवेदना की आस
पथ बंचक को पथ की तलास
मृत्यु दाता को ,
जीवन की आस
आज भी है ,
विडम्बना है-----
एक अभागी कोख का किरायेदार ,
खेलने वाला खून की होली ,
वैर की ज्वाला में दहकता ,
अंश !
किसी अल्पजीवी निहारिका का ,
जिसे नापसंद है ----
विकास ,मावता ,शांति सद्भाव
दया करुना क्षमा ,प्यार ,
एक सूत्रीय लक्ष्य
विनास भारत का !
जो संभव नहीं ---
साक्षी है युग ,दिग -दिगंत
सदियाँ ,ब्रह्माण्ड ,
हर काया में समाया ,
गुरुओं का अमृत , खून इस माटी का
हौसला तो देख --
एक पतिंगे को भी रखते हैं
महफूज़ इतना ,
बेजोड़
यही है हृदय ,चरित्र भारत का ,
शरणागत को न्योछावेर कर देते हैं ,
एग्यारह करोड़ ------
10 टिप्पणियां:
सचमुच यह विडम्बना ही है हमारी व्यवस्था की अकर्मण्यता की..बहुत सार्थक प्रस्तुति..आभार
सार्थक रचना...
यह क्षणिका भी बढ़िया रही!
यह क्षणिका भी बढ़िया रही!
वाकई में 'आज भी विडम्बना है'
न्यायालय मजबूर,न्याय असहाय.
व्यवस्था ही ऐसी है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईये.नई पोस्ट जारी की है.
आपका इंतजार है.
सच में हमारी व्यवस्था ही ऐसी है...कैसी विडंबना है ये...
संवेदन- हीन को संवेदना की आस
सार्थक पंक्ति....
वाकई विडम्बना ही है ...
हम तो यही कहेंगे .. हमारी न्याय व्यवस्था को कोई नही जबाब , तभी तो मेहमान बना है अजमल कसाब
बहुत सार्थक प्रस्तुति..आभार.....
अजब विडम्बना है ये व्यवस्था. मजबूर ये हालात सब तरफ है. अच्छी पोस्ट.
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