हम ज़माने के सांचों में ढलते रहे ,
जैसे बदला जब मौसम बदलते रहे-
शोक गीतों को गाने का मतलब न था
हम शहीदी का मतलब बदलते रहे-
धर्म की हर किताबें , इलाही नजर ,
हम तो उनको भी साकी समझते रहे -
जब भी रखा मसीहों ने अपने कदम ,
क्या लियाकत!सिर-कलम उनका करते रहे-
दौर था जब जहालत से पर्दा उठे ,
बे - गैरत नशे में हम सोते रहे -
क्या खोया , क्या पाया , देख तारीख में ,
मर्सिया , मौत का अपनी पढ़ते रहे -
उदय वीर सिंह
धर्म की हर किताबें , इलाही नजर ,
हम तो उनको भी साकी समझते रहे -
जब भी रखा मसीहों ने अपने कदम ,
क्या लियाकत!सिर-कलम उनका करते रहे-
दौर था जब जहालत से पर्दा उठे ,
बे - गैरत नशे में हम सोते रहे -
क्या खोया , क्या पाया , देख तारीख में ,
मर्सिया , मौत का अपनी पढ़ते रहे -
उदय वीर सिंह