इतनी दौलत में ताकत नहीं है ,
नूर को मोल कोई ख़रीदे -
इतना मालिक का रुतबा बड़ा है,
कोई सूरज को क्या रौशनी दे-
बा - अदब इल्म का शुक्रिया है,
आगे हर दौर में , दुनियां पीछे -
मुन्तजिर हैं ज़माने की आँखे-
ख्वाब उल्फत का कोई मुझे दे
जर्रा - जर्रा हुनर का नमूना ,
शक्ल मिलती न एक दुसरे से ,
संगदिल को भी दिल दे दिया है,
हुश्न को शायरी के सलीके-
मेरी आँखों में तेरा शहर हो
जब भी देखे, नजर भर के देखे-
चले जब कदम, हो उधर तेरा दर,
चाहे ठुकराए या दात देदे -
उदय वीर सिंह
6 टिप्पणियां:
bahut khoobsoorat shayari ...
बहुत बढ़िया....
सादर
अनु
बेहतरीन, मन को छूती हुयी..
वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को आज दिनांक 17-09-2012 को ट्रैफिक सिग्नल सी ज़िन्दगी : सोमवारीय चर्चामंच-1005 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
बहुत उम्दा और खुबसूरत सूफियाना मिजाज लिए रचना के लए साधुवाद
इतनी दौलत में ताकत नहीं है ,
नूर को मोल कोई ख़रीदे -
इतना मालिक का रुतबा बड़ा है,
कोई सूरज को क्या रौशनी दे-
गहन अनुभूतियों और दर्शन से परिपूर्ण रचना....
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