गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

कोशिश हो रही है --


कोशिश हो रही है --

लोहे   के  चने   चबाने की
मनुष्य को ईश्वर बनाने की ,
नीर को ज्वाला बनाने  की ,
पहाड़  समतल  बनाने  की-

कोशिश हो रही है -
वतन को अपना बनाने की ,
रिश्तों  को समझ पाने की ,
इबारत   नए   ज़माने   की
संवेदना    भूल    जाने   की-
कोशिश हो रही है -

दही   से ,   दूध   पाने     की ,
हाथ   में  दही   ज़माने  की ,
बे-  जमीन  पौध उगाने की
जमीन   पर चाँद, लाने  की-
कोशिश हो रही है -

विज्ञान       का     दौर   है
इंसानियत भूल  जाने  की
दौर -ए-इश्क   का आलम
शराफत  नये  जमाने  की,
कोशिश हो रही है -

प्रदूषित हो  गयी  है फिजा,
निजात        पाने         की,
धरातल   शर्म  से   झुलसा
अनवरत निखार लाने  की-
कोशिश हो रही है-

कहने   में  जाता  क्या  है
एक  बृक्ष  हवा  में लगायें ,
खाली  पेट   भी  जिन्दा हैं
पेड़     में   पैसे उगाने  की,
कोशिश  हो  रही  है-

                                  -उदय  वीर सिंह





 


4 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बस गया है खून में फरेब
पेड़ में पैसे उगाने की
कोशिश हो रही है-

....बहुत खूब! आज की व्यवस्था पर सटीक चोट..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच में यही कोशिश हो..

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई उदयवीर जी सत श्री अकाल |बहुत ही सुन्दर रचना और दशहरा के लिए मुबारकबाद |

Asha Joglekar ने कहा…

वाह बहुत ही बेहतरीन रचना है । कोशिश हो रही है असंभव को संभव बनाने की इंन्सानी मूल्य बदलने की ।