सोमवार, 24 दिसंबर 2012

भाषण तेरा सस्ता है ....


भाषण      तेरा    सस्ता  है
व्यवहार  में  है आवारापन -
हाथों     में     गुलदस्ता  है
कानों में कितना बहरापन-

जिह्वा   पर  मीठी  मिश्री है ,
छल  -  वासना  आँखों  में -
पांचाली    या    अनसुईया,
कुंती, जोधा  की स्वांशों में-

निति-वैधव्य  ही जाई क्यों
कुंठा      व        बंजारापन-

पूत   तू   है  एक   बेटी  का,
फिर भी  बेटी  का  घाती है,
तेरे    घर    में   तेरी    बेटी,
असुरक्षित   है , मुरझाती है -

रोती  कहती  सृजना हूँ   मैं,
क्यों    नहीं    है   अपनापन-

नेता अभिनेता रक्षक  साधू
कर्णधारों   का  नाम   देख-
बंधू ,कुटुंब, मित्र , सम्बन्धी
रक्त - रंजित  हैं  ,पढ़  प्रलेख-

संस्कार से  है मानस खाली,
कर्म    से   है   नक्कारापन- 


                       -उदय वीर सिंह 







4 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सही कहा है ...

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

सही भी और आज का सच भी

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जीवन ऐसा धिक्कारा है,
कर्मशून्यता में हारा है।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत ख़ूब!

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कवि तुम बाज़ी मार ले गये!