शीर्ष संवेदनाओं का भारत हमारा
फूलों का आंचल , अंगारे न देंगें-
वीथियों में बसंती बहारों का मेला
पतझड़ को उपवन में आने न देंगें -
यश- प्रभा मंजरी शांति सुख का सवेरा
प्रीत की रीति का ही सृजन मांगता है
वेदना के प्रवाहों में बहता है फिर भी
मानस में प्रज्ञा प्रखर बांटता है-
शांति - एका का संदेश - वाहक रहा है
शांति का पुंज धरती से मिटने न देंगें-
शौर्य का ,धैर्य का , सौम्य का रूप है
इसकी धरती पर ईश्वर के पग आते हैं
सभ्यताओं का घर प्रेम की पाठशाला
दिया जो वचन वो अमर होते हैं-
आग विद्वेष की जो जलाई किसी ने
हृदय में है सागर दहकने न देंगे-
-उदय वीर सिंह
5 टिप्पणियां:
आग विद्वेष की जो जलाई किसी ने
हृदय में है सागर दहकने न देंगे- उम्दा प्रस्तुति,
गणतंत्र दिबस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
recent post: गुलामी का असर,,,
संस्कृति के उन्नत शिखर पर पुनः स्थापित होगा भारत..
सुन्दर प्रस्तुति |
अब भारत को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.
आपको गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनायें.
ओज और जोश से भरी भावपूर्ण रचना ! बहुत सुन्दर ! गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !
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