रविवार, 10 मार्च 2013

दीपिका


जल लाल अंगारे कारे होए 
री ! तूं  गोरी  की  गोरी- 

कितनी   शाम , सुबह  आई 
काली  घटा   चपला  कर्कस
संचित   राशि  पयोधि  सम
हिय आतुर स्नेह टुटा बर्बस -

वय छोड़ गयी कितने सावन 

री ! तूं   छोरी  की  छोरी -


लगे   दाग    न     रुक   पाए 
बूंद   कमल   की  पात  सम
खिला कमल कीचड़ में कहीं  
छोड़ गया  वह वन - उपवन-

जल    परवाने    खाक   हुए   

री !   तूं    कोरी   की    कोरी- 


बीती    सदियाँ    युग   बीते 
कहता  है परिवर्तन युग का 
शब्द  बदल, कुछ अर्थ बदल 
कुछ दिशा  बदल  कदमों का -

हर  रात बदलता चन्द्र  रूप 

री !  तूं    भोरी   की  भोरी- 
  
विरह  कहे  तो मौन कहेगा 
अंतर्मन    की    पीड़ा    भी ,
भाव -अभाव संवेदित मानस 
प्रकृति -पुरुष की क्रीडा भी -

मुक्त हुआ आराध्य- आराधन 

री !  तूं  बंधे  कित  डोरी - 

                         -  उदय वीर सिंह 





   



      

    

4 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बीती सदियाँ युग बीते
कहता है परिवर्तन युग का
शब्द बदल, कुछ अर्थ बदल
कुछ दिशा बदल कदमों का -

बहुत उम्दा भावपूर्ण सुंदर पंक्तियाँ,,,बधाई ,,,

Recent post: रंग गुलाल है यारो,

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आराधन के भाव मुक्त हों..सुन्दर रचना..

रचना दीक्षित ने कहा…

बीती सदियाँ युग बीते
कहता है परिवर्तन युग का
शब्द बदल, कुछ अर्थ बदल
कुछ दिशा बदल कदमों का.

सार्थक सन्देश.

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.

Dinesh pareek ने कहा…

बहुत सार्थक प्रस्तुति आपकी अगली पोस्ट का भी हमें इंतजार रहेगा महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये

आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये

कृपया आप मेरे ब्लाग कभी अनुसरण करे