शुक्रवार, 17 मई 2013

जलाओ दिल मितरां कि....


जलाओ दिल मितरां कि चिराग जले 
अँधेरा  ही   अँधेरा   है  बहुत  दूर तक -

लगता  है  गर्दिशों  में  माहताब भी है
बादलों  का  बसेरा  है  बहुत  दूर तक -

जद्दोजहद है निकलने  की गिरफ्त से
उसकी बाँहों का घेरा है बहुत दूर तक ...

गुम है दामिनी भी नील निलय में कहीं 
सन्नाटों  का   डेरा  है  बहुत  दूर तक -

अंतहीन नीरवता में  बिम्ब की तलाश  
स्याह  रातों  का  सवेरा  है  बहुत तक- 

संवेदनाओं का द्वार कदाचित खुल ही जाये 
वेदनाओं का जखीरा है बहुत दूर तक -

                                       - उदय वीर सिंह

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दिशा मिले इस साहित्यिक उछाह को।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह..
अंतहीन नीरवता में बिम्ब की तलाश
स्याह रातों का सवेरा है बहुत तक-
बहुत सुन्दर!!

सादर
अनु

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर !

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