घुंघरुओं से नवाजा,
परी कहता था दलाल
मंत्री बन गया है ,
आज तवायफ कह गया -
हल्के हो जाते हैं बरस कर
ये बादल भी,
न इनकी कोई जमीं होती
न आसमां होता-
किसी नाम की तलाश नहीं है
कुए- मुकाम में दोस्त
मुझे मालूम है अपना नाम
और लिखना भी आता है-
इफरात हैं दो हाथ सिजदे को
संवरने को जीने को मितरां ,
रब उनको भी पनाह देता है ,
जिनके हाथ नहीं होते-
--- उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
इफरात हैं दो हाथ सिजदे को
संवरने को जीने को मितरां ,
रब उनको भी पनाह देता है ,
जिनके हाथ नहीं होते-
वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
RECENT POST: नूतनता और उर्वरा,
बहुत खूब ... सच है रब हर किसी का साथ देता है ...
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