मंगलवार, 2 जुलाई 2013

चश्मा

धुंधली सी, 
दिखती है तस्वीर ,
जितना पोंछती है आँचल से 
गीली हो जाती है ,
आंसूओं से बार- बार ...|
चश्मा लाने  गए बेटे  की  
कई दिन से प्रतीक्षा में ,
पथरायी आँखों
टूटे हुए मकान की खिडकियों से 
देखती है, 
वीरान सुनसान रास्तों 
की ओर ....|
नहीं आया है ....|
बहू कहती है -
अम्मा !
नजर कमजोर हो गयी है |
अच्छा  ही है |
देखने को  रह गया है ....
उजड़ी बस्तियां ,खँडहर 
शैलाब ,शव ,कांपते पहाड़ ....
बहू की सूनी मांग 
ह्रदय में रहने वाला 
अब फ्रेम में समा गया है 
छा गया है 
अंतहीन अंधकार 
जिसमे  अब 
चश्में की 
जरुरत नहीं होगी  ......|
  
                  --  उदय वीर सिंह 




10 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

त्रासदी सब हर ले गयी, राह तकें तो किसकी हम?

रविकर ने कहा…

झकझोरती हकीकत -

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत मार्मिक ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुंदर सृजन,उम्दा प्रस्तुति,,,

RECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुंदर सृजन,उम्दा प्रस्तुति,,,

RECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

मन को छू गई
बहुत सुंदर

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

चश्मे को शब्दों में सजाना भा गया.......

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन मिलिये ओम बना और उनकी बुलेट से - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

आपके शब्दों में संवेदनशील ह्रदय की 'कराह' चीत्कार बन गई है। जबरदस्त ... उदयजी .

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

आपके शब्दों में संवेदनशील ह्रदय की 'कराह' चीत्कार बन गई है। जबरदस्त ... उदयजी .