शराफत पसंद इमारतें बंद हैं मुद्दतों से
शायद शरीफ शराफत से बावस्ता नहीं रहे
***
कर इजाफा चाहतों में , कह रहा गंतव्य तेरा
मुमकिन नहीं जो आज है, कल उसी को सर करोगे-
संगमरमरी बदन के पढ़ते रहे कसीदे
शिनाख्त करता साया , संगमरमरी नहीं होता -
***
चले घर से फरमायिशों, ख्वाहिशों की इमदाद थी
कहीं दूर रह गयीं हसरतें ,ख्वाहिशें गाफिल न हुयीं - .
***
बुलंदियों का चाँद लेकर क्या करूँगा मैं
वो हर रोज मांगता है रौशनी किसी और से -
***
फलसफों की बिसात क्या है दौर -ए - तलाश
यकिनन आज कायम है कल बदल जायेगा -
उदय वीर सिंह
शायद शरीफ शराफत से बावस्ता नहीं रहे
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कर इजाफा चाहतों में , कह रहा गंतव्य तेरा
मुमकिन नहीं जो आज है, कल उसी को सर करोगे-
संगमरमरी बदन के पढ़ते रहे कसीदे
शिनाख्त करता साया , संगमरमरी नहीं होता -
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चले घर से फरमायिशों, ख्वाहिशों की इमदाद थी
कहीं दूर रह गयीं हसरतें ,ख्वाहिशें गाफिल न हुयीं - .
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बुलंदियों का चाँद लेकर क्या करूँगा मैं
वो हर रोज मांगता है रौशनी किसी और से -
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फलसफों की बिसात क्या है दौर -ए - तलाश
यकिनन आज कायम है कल बदल जायेगा -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
बुलंदियों का चाँद लेकर क्या करूँगा मैं
वो हर रोज मांगता है रौशनी किसी और से -
बहुत सुंदर बात कही. पराश्रित होना अपने स्वभाव से विमुख करता है.
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