मैं जब भी रूठता था
तो चाँद मांगता था
थाली में भर के पानी
अम्मा मुझे दिखाती -
अमावस की रात आती
मुश्किल की बात होती
वो मामा के घर गया है
आम्मा मुझे बताती -
पूनम की रात का
शिखर युवराज चन्द्रमा
जीता है रण ,अंधेर से
किस्से मुझे सुनाती-
बादल कभी फुसला कर
उसे परदेश ले गए
लग गए कई दाग वहां
अम्मा मुझे दिखाती -
गांवों में उसके अक्सर
बाढ़ बहुत आती
डूबने से उबरने की
गाथा मुझे सुनाती-
घनी शर्दियों में अक्सर
बादलों में छिप गया
तारों की व्यग्रता उसकी
अठखेलियाँ बढाती-
दूध और भात का उसे
मधु व्यंजन पसंद था
इसी बहाने अम्मा
अन्नप्रासन मुझे कराती-
- उदय वीर सिंह
5 टिप्पणियां:
सुन्दर!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (18-09-2013) प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर है माता -चर्चा मंच 1372 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सबके मन की करती अम्मा,
मन को मन तक भरती अम्मा।
बेहतरीन रचना...
:-)
बेहतरीन रचना...
:-)
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