रविवार, 8 सितंबर 2013

कितने मुक्तसर होते हैं-

पथरायी आँखों में नूर नहीं रहा भले 
दिल में खूबसूरत नजर रखते हैं -

बरसाओ धूप के अंगारे चाहे कितने 

अपनी बस्तियों में शजर रखते हैं -

वीरान बेरौनक बदसूरत दिखता तन 

सीने में बेमिसाल शहर रखते हैं -

आफताबो ,माहताब पर अब यकीं न रहा 

माचिस की तीलियों में सहर रखते हैं -

फूलों में छुपा के नश्तर रखने वालों 

हम कागजी सही फूल मोहब्बत के रखते हैं -

कहा था टूटने से पहले हसीं  ख्वाब 

सुकून के दो पल  ने कितने मुक्तसर होते हैं-

 आसरा टूटता है छोड़ते हैं जब हाथ अपने

 गैरों के शहर में भी हमसफ़र मिलते हैं -  


                                     -उदय वीर सिंह 

2 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वाह !!!बहुत ही सुंदर भाव अभिव्यक्ति,,,

RECENT POST : समझ में आया बापू .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भाई प्रेम में नज़र लग गयी