उनको नजर आने दे -
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सहरा में सावन , बरस जाने दे-
पीर पर्वत सी होई पिघल जाने दे -
गुलजार गुलशन तो होगा उदय
दर से तूफान को, तू गुजर जाने दे -
कैसे टूटी कसम ,पूछ लेंगे वजह
अपने कूचे में उनको नजर आने दे -
दीप बुझता है घर का तो बुझ जाने दे
रास्ते में मुसाफिर के जल जाने दे -
पत्थरों की तरह कोई जीना भी क्या
बनके जर्रा हवा संग बिखर जाने दे -
- उदय वीर सिंह
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सहरा में सावन , बरस जाने दे-
पीर पर्वत सी होई पिघल जाने दे -
गुलजार गुलशन तो होगा उदय
दर से तूफान को, तू गुजर जाने दे -
कैसे टूटी कसम ,पूछ लेंगे वजह
अपने कूचे में उनको नजर आने दे -
दीप बुझता है घर का तो बुझ जाने दे
रास्ते में मुसाफिर के जल जाने दे -
पत्थरों की तरह कोई जीना भी क्या
बनके जर्रा हवा संग बिखर जाने दे -
- उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......
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