टुटा हादसों में कम आदमी से ज्यादा
आदमी बात समझ में क्यों नहींआती -
टुटा पत्थरों से कम नफ़रत से ज्यादा
दिल , बात समझ में क्यों नहीं आती-
खामोशियों से सूखता, प्रवाह भाषा का
रेगिस्तान से गंगा , कभी नहीं आती-
दर्द का डर, गम हो बिछड़ जाने का,
उस दिल में शहादत की रौ नहीं आती -
तन आया मंदिर में मन माया की छाँव
झुका लेने से सिर इबादत नहीं आती-
- उदय वीर सिंह
आदमी बात समझ में क्यों नहींआती -
टुटा पत्थरों से कम नफ़रत से ज्यादा
दिल , बात समझ में क्यों नहीं आती-
खामोशियों से सूखता, प्रवाह भाषा का
रेगिस्तान से गंगा , कभी नहीं आती-
दर्द का डर, गम हो बिछड़ जाने का,
उस दिल में शहादत की रौ नहीं आती -
तन आया मंदिर में मन माया की छाँव
झुका लेने से सिर इबादत नहीं आती-
- उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
वीर जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं क्या आप एक पाठक भी हैं?
बहुत ही प्यारा लिखा है।
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