गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

- इबादत नहीं आती -

टुटा हादसों में कम आदमी से ज्यादा  
आदमी बात समझ में क्यों नहींआती -

टुटा पत्थरों से कम  नफ़रत से ज्यादा 
दिल , बात  समझ  में क्यों नहीं आती-

खामोशियों से सूखता, प्रवाह भाषा का 
रेगिस्तान   से  गंगा , कभी नहीं आती-

दर्द  का  डर, गम हो  बिछड़  जाने का, 
उस दिल में शहादत की रौ नहीं आती -

तन आया मंदिर में मन माया की छाँव 
झुका  लेने  से सिर इबादत नहीं आती-  

                               -  उदय वीर सिंह 

2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वीर जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं क्या आप एक पाठक भी हैं?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही प्यारा लिखा है।