सुबह का भूला शाम को दर पाये
निराश, जिंदगी से लम्बी उमर पाये-
ताजमहल की बात गरीब कैसे कहे
कम से कम रहने को एक घर पाये -
काँटों की फसल से बसर कहाँ होता
छाँव के जानिब एक शजर पाये -
जीने को दो हाथ मजबूत वो चंगे हैं
इल्मदां बने हाथों में हुनर आये -
अभी क्या जो पाये हैं गम कम हैं
ग़मख़ारी को फौलाद का जिगर पाये -
दिल में हसरत भी है जुस्तजू भी
देखने को मोहब्बत भरी नजर पाये -
- उदय वीर सिंह
निराश, जिंदगी से लम्बी उमर पाये-
ताजमहल की बात गरीब कैसे कहे
कम से कम रहने को एक घर पाये -
काँटों की फसल से बसर कहाँ होता
छाँव के जानिब एक शजर पाये -
जीने को दो हाथ मजबूत वो चंगे हैं
इल्मदां बने हाथों में हुनर आये -
अभी क्या जो पाये हैं गम कम हैं
ग़मख़ारी को फौलाद का जिगर पाये -
दिल में हसरत भी है जुस्तजू भी
देखने को मोहब्बत भरी नजर पाये -
- उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
थोड़े में बहुत-कुछ कह दिया.
बहुत सुंदर !
आपकी दुआयें असर पायें।
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