बुधवार, 28 मई 2014

अग्रसर हो उठी सदी ....


अग्रसर हो उठी सदी 

प्यासी उन्मादी आग की नदी, 
जिसके अंतस में विद्र्पता 
दम्भ, अहंकार, असमानता 
विचारों का गहन सूनापन .....
शंखनाद !
अहमस्मि अहमस्मि ...
पाशविक प्राचीरों से घिरा क्षितिज 
सिमित आसमान, 
मनुष्यता से कितना अनजान ,
सुख- सम्मान का अवसान 
पीड़ा का उन्वान ,
शायद निकृष्टतम अवस्था की ओर
अभिसरित  कदम , 
जहाँ सिर्फ अन्याय की बेड़ियां हैं ,
हिमालय सी प्रतिबंधों की दीवारें 
खोखले तथ्यहीन आदर्शों के नीड़
निचे सुलगती दमन की अंगीठी .....
पुनर्जीवित होगी कायरता 
निर्ममता ,हठता 
स्थापित होंगे वे मूल्य 
जिससे अभिशप्त होती है 
मनुष्यता .....|

                         उदय वीर सिंह 



  








  





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