फतवे और फरमान तो हैं आवाम के जानिब
दंगे ओ फसाद हैं हिन्दू- मुसलमान के जानिब -
कोई भी लक्षमन -रेखा फतवेदारों के लिए नहीं
सारे नियम कानून हैं मजलूम इंसान के जानिब-
गोंद में पोते -पोतियां है गैर मजहबी दामाद के
संस्कृति संस्कार की बातें हैं अवाम के जानिब-
सेक्यूलरिज्म शब्द गवारा नहीं मंचों पर जिन्हें
घर खुला मैदान है बिधर्मी मेहमान के जानिब -
-उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
वाह बहुत बढ़िया ।
badhiya gazal
बढ़िया अशआर।
एक शेर और होता तो मुकम्मल ग़ज़ल हो जाती।
सुंदर रचना सर !
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आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 5 . 9 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
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