बुधवार, 3 सितंबर 2014

अवाम के जानिब.....


फतवे  और  फरमान  तो हैं आवाम के जानिब 
दंगे ओ फसाद हैं हिन्दू- मुसलमान के जानिब -

कोई भी लक्षमन -रेखा फतवेदारों के लिए नहीं 
सारे नियम कानून हैं मजलूम इंसान के जानिब-

गोंद में पोते -पोतियां है गैर मजहबी दामाद के
संस्कृति संस्कार की बातें हैं अवाम के जानिब-
   
सेक्यूलरिज्म शब्द गवारा नहीं मंचों पर जिन्हें 
घर खुला  मैदान  है बिधर्मी मेहमान के जानिब -  

-उदय वीर सिंह  

4 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह बहुत बढ़िया ।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

badhiya gazal

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया अशआर।
एक शेर और होता तो मुकम्मल ग़ज़ल हो जाती।

आशीष अवस्थी ने कहा…

सुंदर रचना सर !
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आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 5 . 9 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !