बुधवार, 3 दिसंबर 2014

माँ से कौन ?


माँ से कौन ?
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     शिक्षक दिवस पर  मुख्य अतिथि  माननीय शिक्षा मंत्री महोदय विद्यालय  के छात्रों को  संबोधित  कर रहे थे । बच्चों ! हमें  समस्त धर्मों का आदर करना चाहिए, सारे धर्म मानव बनाने की आदर्श शिक्षा देते हैं । आपस में हम सभी भाई -भाई  हैं । एक ईश्वर की संतान हैं । विश्व- बंधुत्व का भाव ही शांति और सम्मान का सूत्र वाक्य है । हमें एक दूसरे के उत्सवों, पर्वों को मिल कर मनाना चाहिए । कोई छोटा कोई बड़ा नहीं है । दया ,करुणा ,समता का भाव मनुष्यता का सर्वोच्च गुण हैं । इन्हें अपने जीवन में उतारना होगा ........
      छत्रों ने  मंत्री महोदय के प्रवचन रूपी भाषण को बड़े ध्यान से सुना और आपसी सद्भाव व प्रेम भाई चारा की सपथ ले घर वापस हुये ।
    पा ! क्या मैं अपने मित्र प्रवीण जोशी को आने वाले गुरु पर्व में बुला लूँ ? वो मेरा बहुत अच्छा दोस्त है ।  मेरे पुत्र निहाल सिंह ने हमसे पूछा ।
बेटे क्यों नहीं । इसमे अनुमति की क्या बात है ,गुरु पर्व किसी एक का  नहीं सबका है । मैंने कहा
 पा ! कल के जलसे में मंत्री जी भी यही कह रहे थे । निहाल सिंह  ने कहा ।
गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के जन्म दिन पर प्रवीण जोशी व उसकी छोटी बहन मेरे घर आए मेरे बच्चों के साथ गुरुद्वारे में कीर्तन, कड़ा - प्रसाद व लंगर का आनंद उठाए । उहों ने मुझे शुक्रिया कहा।  मैंने उनको अपनी गाड़ी से उनके घर भिजवा दिया । बच्चे बहुत खुश थे ।
    एका दिन प्रवीण जोशी के घर कोई धार्मिक अनुष्ठान था । प्रवीण ने मेरे बच्चों को  अपने घर आमंत्रित किया । निहाल ने हमसे  कार्यक्रम में जाने की इजाजत मांगी । मैंने सहर्ष हामी  भर दी । निहाल को मैंने नियत समय पर भेज दिया ।
    काफी सर्दी  थी अप्राहन भी  प्रभात जैसा लग रहा था ,मैं कहीं जाने की तैयारी में था । पत्नी बोली
सुनते हो ?
 हाँ जी  ! बताओ । मैंने कहा ।
निहाल और सिमरन को प्रवीण के घर से आते समय ले लेना ।
कितने बजे ? मैंने पूछा ।
 करीब पाँच बजे के आस पास ।  पत्नी ने कहा ।
मैं अपने काम निपटा कर वापस आ रहा था कि पत्नी ने फोन कर बताया ।
आप घर चले आइए बच्चे आ गए हैं ।
कैसे आए , मैं तो लेने जा ही रहा था ।
वो  आ गए हैं ,कितना दूर है ही प्रवीण का घर । पत्नी ने बताया ।
 मैं घर आ गया
थोड़ी देर बाद मैं निहाल को पुकारा
निहाल !
जी  पा !
कैसा रहा मित्र प्रवीण जोशी  के यहाँ का कार्यक्रम ?  मैं सोचता हूँ खूब आनन्दा आया होगा ? मैंने मुदित होते हुये कहा ।
  नहीं पा ! अच्छा नहीं रहा । बेटी सिमरन पास आकर बोली ।
 क्यों ? मैंने प्रश्न किया ।
वीर जी को जोशी अंकल ने थप्पड़ मारा और डांटा । मायूष सिमरन ने  लगभग रोते हुये कहा ।
  मैं विस्मय से  मासूम निहाल कभी सिमरन की ओर देख रहा था ।
सारी पा ! मैंने भी कथा करने वाले पंडित जी से एक प्रश्न कर दिया । हालांकि सभी पूछ रहे थे । मैं समझ भी नहीं पाया ,प्रवीन के पिताजी जोशी अंकल ने मुझे चांटा मारा और डांटा भी । और चले जाने को कहा ।
  फिर हम और सिमरन  आटो से घर चले आए , निहाल के गालों पर आँसू ढल रहे थे ।
आप ने क्या प्रश्न कर दिया की वो गुस्सा हो गए और हाथ छोड़ने की स्थिति  बन गयी ।
 पा  ! पंडित जी प्रबचन में कह रहे थे कि -
ब्राह्मण मश्तिष्क से पैदा हुआ है ,क्षत्रिय भुजाओं से वैश्य उदर [पेट ] से और शूद्र पैर से पैदा हुआ है । ये हमारे समाज की सनातन संरचना है । अगर किसी को कोई शंका हो तो  समाधान भी मेरे पास है ,निःसंकोच पूछ सकता है । मैंने अपनी शंका बताई कि
 पंडित जी ! जब ये सारे विभिन्न अंगों से पैदा हुये तो माँ से कौन पैदा हुआ ?  मेरी शंका का समाधान बताइये ।  यह सुन  पंडित जी गुस्से में आग बबूला हों गए ।
    ये दुष्ट कौन है  ? बोले और मुझे निकल जाने को कहा । तभी प्रवीण के पिताजी मेरे पास आए और बांह पकड़ पंडाल से बाहर ले आए और अपमानित कर  चले जाने को कहा ।
     यह सुन कर मैं आक्रोश में आ गया । फोन मिला रहा था कि प्रवीण के पिता से बात करूँ । तभी मेरी पत्नी बोली ।
     मत बात करो ! विवाद का कारण बनेगा । ये उनकी सोच है ,विवाद का विषद रूप बच्चों को उद्वेलित कर सकता है । मैं अपने को संयत करने कि कोशिश करने लगा ।
   अपने अध्ययन कक्ष  छत को देखते में सोच रहा था । ये नैशर्गिक बाल सुलभ प्रश्न को चाँटों ने   विरमित तो कर दिया ,तिरोहित नहीं हुआ । कल समाज का प्रश्न बन बनेगा , माँ से कौन पैदा हुआ ? क्या चाँटों का प्रयास इनको तिरोहित कर पाएगा ? शायद नहीं ! यदि हाँ तो यह अपराध होगा ।

उदय वीर सिंह .



  




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