माँ से कौन ?
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शिक्षक दिवस पर मुख्य अतिथि माननीय शिक्षा मंत्री महोदय विद्यालय के छात्रों को संबोधित कर रहे थे । बच्चों ! हमें समस्त धर्मों का आदर करना चाहिए, सारे धर्म मानव बनाने की आदर्श शिक्षा देते हैं । आपस में हम सभी भाई -भाई हैं । एक ईश्वर की संतान हैं । विश्व- बंधुत्व का भाव ही शांति और सम्मान का सूत्र वाक्य है । हमें एक दूसरे के उत्सवों, पर्वों को मिल कर मनाना चाहिए । कोई छोटा कोई बड़ा नहीं है । दया ,करुणा ,समता का भाव मनुष्यता का सर्वोच्च गुण हैं । इन्हें अपने जीवन में उतारना होगा ........
छत्रों ने मंत्री महोदय के प्रवचन रूपी भाषण को बड़े ध्यान से सुना और आपसी सद्भाव व प्रेम भाई चारा की सपथ ले घर वापस हुये ।
पा ! क्या मैं अपने मित्र प्रवीण जोशी को आने वाले गुरु पर्व में बुला लूँ ? वो मेरा बहुत अच्छा दोस्त है । मेरे पुत्र निहाल सिंह ने हमसे पूछा ।
बेटे क्यों नहीं । इसमे अनुमति की क्या बात है ,गुरु पर्व किसी एक का नहीं सबका है । मैंने कहा
पा ! कल के जलसे में मंत्री जी भी यही कह रहे थे । निहाल सिंह ने कहा ।
गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के जन्म दिन पर प्रवीण जोशी व उसकी छोटी बहन मेरे घर आए मेरे बच्चों के साथ गुरुद्वारे में कीर्तन, कड़ा - प्रसाद व लंगर का आनंद उठाए । उहों ने मुझे शुक्रिया कहा। मैंने उनको अपनी गाड़ी से उनके घर भिजवा दिया । बच्चे बहुत खुश थे ।
एका दिन प्रवीण जोशी के घर कोई धार्मिक अनुष्ठान था । प्रवीण ने मेरे बच्चों को अपने घर आमंत्रित किया । निहाल ने हमसे कार्यक्रम में जाने की इजाजत मांगी । मैंने सहर्ष हामी भर दी । निहाल को मैंने नियत समय पर भेज दिया ।
काफी सर्दी थी अप्राहन भी प्रभात जैसा लग रहा था ,मैं कहीं जाने की तैयारी में था । पत्नी बोली
सुनते हो ?
हाँ जी ! बताओ । मैंने कहा ।
निहाल और सिमरन को प्रवीण के घर से आते समय ले लेना ।
कितने बजे ? मैंने पूछा ।
करीब पाँच बजे के आस पास । पत्नी ने कहा ।
मैं अपने काम निपटा कर वापस आ रहा था कि पत्नी ने फोन कर बताया ।
आप घर चले आइए बच्चे आ गए हैं ।
कैसे आए , मैं तो लेने जा ही रहा था ।
वो आ गए हैं ,कितना दूर है ही प्रवीण का घर । पत्नी ने बताया ।
मैं घर आ गया
थोड़ी देर बाद मैं निहाल को पुकारा
निहाल !
जी पा !
कैसा रहा मित्र प्रवीण जोशी के यहाँ का कार्यक्रम ? मैं सोचता हूँ खूब आनन्दा आया होगा ? मैंने मुदित होते हुये कहा ।
नहीं पा ! अच्छा नहीं रहा । बेटी सिमरन पास आकर बोली ।
क्यों ? मैंने प्रश्न किया ।
वीर जी को जोशी अंकल ने थप्पड़ मारा और डांटा । मायूष सिमरन ने लगभग रोते हुये कहा ।
मैं विस्मय से मासूम निहाल कभी सिमरन की ओर देख रहा था ।
सारी पा ! मैंने भी कथा करने वाले पंडित जी से एक प्रश्न कर दिया । हालांकि सभी पूछ रहे थे । मैं समझ भी नहीं पाया ,प्रवीन के पिताजी जोशी अंकल ने मुझे चांटा मारा और डांटा भी । और चले जाने को कहा ।
फिर हम और सिमरन आटो से घर चले आए , निहाल के गालों पर आँसू ढल रहे थे ।
आप ने क्या प्रश्न कर दिया की वो गुस्सा हो गए और हाथ छोड़ने की स्थिति बन गयी ।
पा ! पंडित जी प्रबचन में कह रहे थे कि -
ब्राह्मण मश्तिष्क से पैदा हुआ है ,क्षत्रिय भुजाओं से वैश्य उदर [पेट ] से और शूद्र पैर से पैदा हुआ है । ये हमारे समाज की सनातन संरचना है । अगर किसी को कोई शंका हो तो समाधान भी मेरे पास है ,निःसंकोच पूछ सकता है । मैंने अपनी शंका बताई कि
पंडित जी ! जब ये सारे विभिन्न अंगों से पैदा हुये तो माँ से कौन पैदा हुआ ? मेरी शंका का समाधान बताइये । यह सुन पंडित जी गुस्से में आग बबूला हों गए ।
ये दुष्ट कौन है ? बोले और मुझे निकल जाने को कहा । तभी प्रवीण के पिताजी मेरे पास आए और बांह पकड़ पंडाल से बाहर ले आए और अपमानित कर चले जाने को कहा ।
यह सुन कर मैं आक्रोश में आ गया । फोन मिला रहा था कि प्रवीण के पिता से बात करूँ । तभी मेरी पत्नी बोली ।
मत बात करो ! विवाद का कारण बनेगा । ये उनकी सोच है ,विवाद का विषद रूप बच्चों को उद्वेलित कर सकता है । मैं अपने को संयत करने कि कोशिश करने लगा ।
अपने अध्ययन कक्ष छत को देखते में सोच रहा था । ये नैशर्गिक बाल सुलभ प्रश्न को चाँटों ने विरमित तो कर दिया ,तिरोहित नहीं हुआ । कल समाज का प्रश्न बन बनेगा , माँ से कौन पैदा हुआ ? क्या चाँटों का प्रयास इनको तिरोहित कर पाएगा ? शायद नहीं ! यदि हाँ तो यह अपराध होगा ।
उदय वीर सिंह .
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