मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

वहम के पार ....

तेरी हनक के गुब्बार में गर
तेरी आवाज सुनाई दे
तलाशे  वजूद भी जारी रखना -
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पकड़ मजबूत रख दस्ते शमशीर की 
ये उसी की होती है 
जिसके हाथ में होती है -
***
उसके हाथ में छैनी हथौड़ी गैंतीयां हैं 
राजमहल बनाता है 
जब थाम लेगा कलम 
संविधान भी बना सकता है -
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वो ठहरा है राहे मजिल इंतजार करने दो ,
शायद  उसे जरूरत हो
हमकदम हमसफर की -
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दरख्त का शिखर भी सोचता 
के जड़े दफन हैं 
तो सिर्फ उसके वजूद के जानिब -
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वो गया तो न लौटा कभी तेरे दर 
तूने कांटे दिये या फूल 
ये तुम जानो -
**
किसी की मुकद्दर पे तुम्हें रोना आए ,
के  पहले अपनी मुकद्दर का
माजी देखो -
***
सृष्टि की अनमोल सहचरी
सेवा के आँगन कानन
सुख-दुख निज विस्मृत करती
पर सेवा में आभारी है





2 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को
दर्शन करने के लिए-; चर्चा मंच 1893
पर भी है ।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

एक से बढ़कर एक अशआर।
सीधी-सपाट बयानी द्वारा वक्रोक्ति का पूरा बौद्धिक सुख भरा है हर अशआर में।