शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

बैसाखियाँ साथ होती हैं

उन्माद की राहों में पनाहों में बसर नहीं होता
बसा पानी की लहर , कोई  शहर नहीं होता -

मिलते हमराह,उजालों में दो कदम के लिए
अँधेरों में अपना साया भी हमसफर नहीं होता -

टूट  जाते  हैं ,बिखर जाते हैं ,बसाये सपने   
उसे शमशान कहते हैं ,वो  घर  नहीं होता  -

छोड़ा साथ अपनों ने ही नहीं ,पैरों ने कभी
बैसाखियाँ साथ होती हैं तन्हा सफर नहीं होता -



उदय वीर सिंह  

1 टिप्पणी:

Satish Saxena ने कहा…

उसे शमशान कहते हैं ,वो घर नहीं होता

बहुत खूब !