सोमवार, 30 मार्च 2015

है खून कुछ बाकी रगों में...

बनकर मुसाफिर देखिये 
मंजिल नहीं तो क्या हुआ
सिर्फ पत्थरो को कोसिए
ठोकर लगे तो क्या हुआ -
खून कुछ है बाकी रगों में
चुसिए लाश है तो क्या हुआ -
शमशान को अनुदान है
घर को नहीं तो क्या हुआ -
मदिरा का सेवन कीजिये
रोटी नहीं तो क्या हुआ -
जनता को जी भर लुटिए
रोजी नहीं तो क्या हुआ -
कोठों पर जाकर सोईये
वोटी नहीं तो क्या हुआ -
सर आप अमृत पीजिए
जग मुआ तो क्या हुआ -
अगले जनम को दक्षिणा
यह जन्म भूखा क्या हुआ -
रंगमहल हँसता रहे नित
गरीब रोये क्या हुआ -

दर्द की व्याख्या मिली है
मरहम नहीं तो क्या हुआ
हैं हम लगाए आस बैठे
जुमला हुआ तो क्या हुआ -
उदय वीर सिंह

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (31-03-2015) को "क्या औचित्य है ऐसे सम्मानों का ?" {चर्चा अंक-1934} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

सुन्दर रचना