बाढ़ में बह गए सच्चे रिश्ते
फफूंद की तरह उग आये रिश्ते -
फफूंद की तरह उग आये रिश्ते -
जब लोड़ थी दर्द परवान था
घर से बाहर निकल न पाये रिश्ते -
आवाज देती रहीं बैसाखियाँ मेरी
कैसे अपने हुए ,पराए रिश्ते -
आगोश में ले रही थी किश्ती दरिया
शिद्दत से तिनकों ने निभाए रिश्ते -
सुलझाने की कोशिशों में रहा ताउम्र ,
हर मोड पर बे-तरह उलझाए रिश्ते -
करा ली वरासत, जब्त कर ली दुनियां
कैसे धोकर हाथ मुस्कराए रिश्ते -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
अच्छी रचना !
हक़–ओ-इन्साफ़
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