रविवार, 26 जुलाई 2015

प्रेम की आत्म- हत्या

                                       ** प्रेम की आत्म- हत्या  ***[ लघु कथा ]

घर परिवार ,नाते -रिश्तेदार मित्र , निहालगढ़ पिंड के वसनिक एक सप्ताह हुये तेजा सिंह की अकाल मृत्यु [ आत्म- हत्या ]के भोग [श्रद्धांजलि - सभा में गहन पीड़ा के साथ शामिल हुए। सबको तेजा सिंह जी के असमय जाने का दुख था । वे बड़े नेक व विनम्र कुशल कृषक थे । सबको उनसे प्यार था ।उम्र रही होगी तकरीब पचपन- साठ के बिच । हँसता मुस्कराता,मिलनसार,सदाबहार व्यक्तित्व ।
    अब तेजा सिंह जी हमारे बीच नहीं हैं , उनकी आतमा को परमात्मा शांति प्रदान करे ,अपने चरना कमलां बिच आत्मा को स्थान दे । पीछे परिवार को, असमय आई अपार पीड़ा को सहन करने की शक्ति दे । परिवार के बुजुर्ग ,बच्चे ,पड़ने वाले विद्यार्थियों ,बेटियों की शादी कुड़माई का बोझ परिवार कैसे उठाए यह सब अब परिवार को सोचना है । हम सब को आगे आकर सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाना होगा । यह हम भी संकल्प लें ।
आगे प्यारे किसान भाइयों ! यह बताते हुए प्रसन्नता नहीं अत्यंत दुख हो रहा है कि आज धरती का पूत ,समाज का अन्नदाता ,परिवार के भरण - पोषण का उत्तरदायित्व निभाने वाला व देश के विकास का मेरुदंड माना जाने वाला किसान, कितना पतित हो गया है । गिर गया है अपने चरित्र से । प्रधान गुरुदास सिंह जी अपनी संवेदना व्यक्त कर रहे थे ।
क्या हो गया गुरुदास सिंह जी ? ये आप क्या कह रहे हैं ? आश्चर्य से दिवंगत तेजा सिंह की शोक सभा मे शामिल किसानों एवं अन्य लोगों की भीड़ से आवाजें आईं ।
   साध संगति ! जो हमने कहा है उसे कहने का आधार है । कारण है ! किसान प्रेम-सबन्धों की वज़ह से आत्म - हत्या करने लगा है । हाँ प्रेम ! बेशुमार प्रेम ! इतना प्रेम की मौत को गले लगाने लगा है । यह मेरा नहीं एक सरकारी वजीर का बयान आया है । सरकारी वजीर का बयान ! आश्चर्य मिश्रित सभा से कई आवाजें उठीं ।
      हाँ जी ! संघीय कृषि मंत्री का बयान । हाथ में लिए अखबार ज़ोर देते हुये बोले ।
किसान विपदा की वजह से नहीं ,पीड़ा की वजह से नहीं ,मुफ़लिसी की वजह से नहीं, आपसी विवाद की वजह से नहीं ,फसल की बर्बादी की वजह से नहीं, प्रेम की वजह से ,प्रेम की वजह से ही आत्म- हत्या कर रहा है। गुरुदास सिंह जी पीड़ा से कराहने की मानिंद बोले ।
     यह सत्य नहीं है । जिन किसानों ने आत्म हत्या की है, उसकी वजह, उनके मरने के पूर्व उनके लिखे पत्रों में कुछ और है । जो पुलिस के पास दस्तावेज़ के रूप में सूरक्षित है । कुछ मेरे पास भी मेरे कम्पुटर में है । मैं पत्रकार हूँ ,मुझे इसकी पूरी जानकारी है । वजीर का बयान सत्य से परे है ।  एक युवक तमतमाया हुआ चेहरा लिए उठ कर बोला ।
    क्या जानकारी है सुनील कोचर जी आप के पास जरा बताएगे हम लोगों को ?, दरबारा सिंह जी थोड़ा असहज हो उठकर ऊंची आवाज में बोले ।
     मैं पीत पत्रकारीता की बात करूँ तो किसानों की मौतें फसलों की बर्बादी ,कर्ज का बोझ ,पारिवारिक दायित्वों की नाकामी ,सरकारी उपेक्षा ही रही है । प्रेम प्रसंग नहीं । अपनी दमदार आवाज में युवा पत्रकार सुनील कोचर ने कहा ।
आप वजीर को झूठा कह रहे हैं ? आप पर गलत बयानी का आरोप लग सकता है ।वजीर अपना बयान सोच समझ कर ही देता है वह कभी गैर -जिम्मेदार नहीं हो सकता । व्यवसायी प्रेम सिंह जी ने प्रतिवाद किया ।
आप ठीक कह रहे हैं प्रेम सिंह जी । यह प्रेम में ही आत्म -हत्या है । आप सोलह आने सच हैं । कल अपने व्यवसाय के बर्बाद या दिवालिया होने पर आप द्वारा की गयी आत्म- हत्या प्रेम में की गयी आत्म -हत्या मानी जाएगी शायद । भले ही आप के आत्म -हत्या पत्र में व्यवसाय की बर्बादी ही लिखा हो । गुरुदास सिंह जी ने बड़े सहज ढंग से कहा ।
संगत चुप थी । आकाश में बादल घिरने लगे थे ,सफ़ेद आवारा बादल तेजी से बहके बहके जा रहे थे । पीछे काले मोटे बादल अपने रौद्र रूप में स्थान लेने लगे थे । शायद फिर कुछ दिन पहले हुई बर्बादी की पुनर्वृत्ति के लिए । तेजा सिंह ने बेटे की पढ़ाई की फीस बेटी की हो चुकी कुड़माई की तय शुदा शादी की तारीख ,मकान की मरम्मत की आश पर, तूफानी वारिस और ओलों के बज्राघात ने पानी फेर दिया था । सबके चेहरे पर मायूसी थी ,तेजा सिंह के जाने गम ,उनके परिवार के प्रति लोगों की सहानुभूति स्पष्ट झलक रही थी ।
      तमाम हुई बातों के उपरांत शोक सभा विसर्जित करने के उदद्बोधन में बुजुर्ग मोहर सिंह जी ने अपने अध्यक्षीय उदद्गार में पीड़ा लिए बड़ी सहजता के साथ कहा -
     वजीर ने जो कहा यह उसकी सोच, उसका संस्कार ,उसकी रणनीति हो सकती । यह कथन उनको किन अर्थों में उन्हें महान बनाता है ,यह मुझे नहीं मालूम ।मुझे उनके ज्ञान -शौर्य, सामाजिक संचेतना संवेदना और सरोकार पर आश्चर्य है ।वजीर साहब के प्रेम संदर्भ रहस्यमयी हो सकते हैं , परंतु स्वर्गीय तेजा सिंह जी को प्रेम था ,उनकी सच्ची प्रीत थी, यह निर्विवाद सत्य है । जिस प्रीत में उनके तमाम सपने पल रहे थे । सहन नहीं कर पाये अपनी टूटी बिखरी प्रीत के सदमे को । निर्णय ले लिया बिछोड़े का । अगर इसे प्रेम में आत्म- हत्या कहते हैं ,तो इसमें हमारी सहमति है । क्यों की उन्हें प्रेम था अपनी कृषि से अपने परिवार से विकास से ......।
उदय वीर सिंह




 
     

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