करूंगा क्या मैं बहारों का काफिला लेकर
जी न पाऊँगा कहीं गमों को फासला देकर -
मशविरा मसर्रत में हमने पाये हैं बहुत
हाथ छोड़ा है मेरी गुरबती का वास्ता देकर -
तुमसे शिकायत है शिगाफों से झाँकने वाले
अनजान बन गए हो , हमें रास्ता देकर -
टूट जाते हैं पत्थर , चोट दिल पे जो लगी
मुकर जाता है जमाना, फलसफा देकर -
उदय वीर सिंह
जी न पाऊँगा कहीं गमों को फासला देकर -
मशविरा मसर्रत में हमने पाये हैं बहुत
हाथ छोड़ा है मेरी गुरबती का वास्ता देकर -
तुमसे शिकायत है शिगाफों से झाँकने वाले
अनजान बन गए हो , हमें रास्ता देकर -
टूट जाते हैं पत्थर , चोट दिल पे जो लगी
मुकर जाता है जमाना, फलसफा देकर -
उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
आपकी इस पोस्ट को शनिवार, ११ जुलाई, २०१५ की बुलेटिन - "पहला प्यार - ज़िन्दगी में कितना ख़ास" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
वाह!
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