रविवार, 2 अगस्त 2015

जीवन प्रेम की छांव में माही....

सब्र से जीवन गुजर जाता है ,तंगहाली में
देख  कैसे माँ उतार लाती है,चाँद थाली में -

पनप जाता है जीवन प्रेम की छांव में माही
उजड़ जाता है नफ़रत से, खाम-खयाली में -

सींच लेता है मधुवन को, मधु-रस बोलों से
दिल में रहता है कहाँ कोई, तंजों गाली से -

है गुरबती भी मसर्रत सी, प्यार के आँगन
ढल जाती है रश्क में वो,गम की प्याली में -

उदय वीर सिंह

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