गुरुवार, 24 सितंबर 2015

वो कल्पना से तुम कर्म से हो

ऊंचा हिमालय तुम्हारी तरह है 
वो पत्थरों से तुम प्रेम से हो -

बहती है सरिता तुम्हारी तरह ही 
वो नीर से है तुम नेह से हो -

जीता सिकंदर शमशीर लेकर 
वो बैर से है तुम स्नेह से हो -

लेता अंगूठा कोई द्रोण बनकर 
वो ज्वाल सा है तुम दीप से हो -

प्रारव्ध ऊंचा तुम सा  नहीं है 
वो कल्पना से तुम कर्म से हो -

उदय वीर सिंह 

1 टिप्पणी:

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

वाह्ह बहुत ही सुन्दर प्रेरक रचना ...
ऊंचा हिमालय तुम्हारी तरह है
वो पत्थरों से तुम प्रेम से हो -
शुभकामनाये :)