शनिवार, 19 सितंबर 2015

जगने के संवत्सर बीते

जगने के संवत्सर बीते
सोने वाले चले गए -
पीड़ा स्तम्भ बन जमीं रही
रोने वाले चले गए-
लगी मैल तो लगी रही
धोने वाले चले गए -
जागेगा सूरज सो करके
प्रतीक्षारत जन चले गए-

रह गई गांठ माई के आँचल
दिन गिनने वाले चले गए-
पिये दर्द अब आश्रित हैं
संग चलने वाले चले गए -
काला टीका बांध करधनी
सुध लेने वाले चले गए -
दूध भात से भरे कटोरे
देने वाले चले गए -

उदय वीर सिंह 


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