गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

कंगन बिंदी याद न आई -

संघर्षों के कानन मेँ
सुबह अजानी शाम पराई -

भूल गए अपनों से वादे
लौट आने की सुधि न आई -

कह कर आया सुख लाऊँगा
दुख की पोटल गुम न पाई -

कर्ज ,दवा तो याद रहे
कंगन बिंदी याद न आई -

हाथों के छाले कम न हुए
बढ़ती पैर की रही विवाई -

बापू की मिश्री माँ का पेठा
बेटी की जलेबी हो न पाई -

उदय वीर सिंह

1 टिप्पणी:

Onkar ने कहा…

उत्कृष्ट प्रस्तुति