रविवार, 15 नवंबर 2015

सहिष्णुता/ असहिष्णुता ..





सहिष्णुता की बात पर परेशान बहुत हैं 
खो गया इंसान कहीं अब भगवान बहुत हैं -
छीनी हंसी औरों की अब विलाप कर रहे
वे तोहमत लगा रहे जो बदनाम बहुत हैं -
मुक्त नहीं हुए आजादी के बाद भी उदय 
दरबारी मानसिकता के गुलाम बहुत हैं - 
पीटने वालों छाती करा दो वापस ननकाना
साहिब हिन्दू सिक्खो के वहाँ मकान बहुत हैं -
खड़ा करते हैं कटघरों में मुल्जिम की तरह
लगाते हैं इल्जाम जिनपर इल्जाम बहुत हैं -
बदलता नहीं साया रंग गिरगिट चाहे बदल ले
बदल लेने वाले पाला आज महान बहुत हैं-

उदय वीर सिंह

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