हर गली हर सड़क जल्लाद देखता हूँ
बेखौफ कातिलों को आजाद देखता हूँ-
रुखसत हो रहे हैं जहीनों के काफिले
हाथों में अनपढ़ों के किताब देखता हूँ -
शरीफ गुमशुदा हैं खा दर दर की ठोकरें
सितमगर दर फरेबी आबाद देखता हूँ -
दौर-ए -आजादी हिंदुस्तान एक था
जश्ने -आजादी सारे वाद देखता हूँ -
उदय वीर सिंह
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बेखौफ कातिलों को आजाद देखता हूँ-
रुखसत हो रहे हैं जहीनों के काफिले
हाथों में अनपढ़ों के किताब देखता हूँ -
शरीफ गुमशुदा हैं खा दर दर की ठोकरें
सितमगर दर फरेबी आबाद देखता हूँ -
दौर-ए -आजादी हिंदुस्तान एक था
जश्ने -आजादी सारे वाद देखता हूँ -
उदय वीर सिंह
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