हम अकेले नहीं भीड़ में साथ हैं
हर लबों पर सवाले सवालात हैं -
शीशों को पत्थरो की निजामत मिली
आज देखो शहर के क्या हालात हैं -
आँखों की नमीं आग सी क्यों लगे
कैसे बिखरे हुए दिल के जज़्बात हैं -
हम परीन्दों के माफिक क्यों न हुए
हमसे अच्छे तो उनके खयालात हैं -
उदय वीर सिंह
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