उठाई गई
बलात
चीखती पुकारती रही
सहायतार्थ
असहाय मां बाप
रसीदे थप्पड़
आतताईयों ने
कहा विक्षिप्त हो गई है ......
उलझे केश
खून से लथपथ
उघारी देह
छिपी झाड़ी में
लिए मानस में द्रोह
तमाशा बन गई है
राहगीरों तमाशबीनों के
सहती पत्थर उठाती पत्थर
समाज कहता
विखिप्त हो गई है ......
उदय वीर सिंह
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