रविवार, 11 दिसंबर 2016

रुठती है संचेतना तो

रुठती है संचेतना तो,
विकार देती है..
जागती है संवेदना तो
संस्कार देती है ..
राहों में खायी ठोकर ,
विचार देती है ..
विनम्रता सफलता को
आधार देती है ...
सत्य-निष्ठां शौर्यता,अन्याय को
प्रतिकार देती है ...
हृदय की विशालता मनुष्यता को 
आकार देती है 
स्नेह की सबलता घृणा को भी 
प्यार देती है... |


-- उदय वीर सिंह .

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