सोमवार, 31 जुलाई 2017

मंदिर कभी मस्जिद ठहरता रहा -

मेरी शाम मेरी सुबह से जुदा रही
मंदिर कभी मस्जिद ठहरता रहा -
कभी तलाश न की साहिल की
मौजों के साथ बहता रहा -
मैंने पूछा नहीं कभी अमीरो फकीर से 
जो कहा दिल ने लिखता रहा -
मुख्तलिफ़ गुलों की कत्लगाह देखी है
मुस्कराने का ईनाम मिलता रहा -
बंधी हर कदम रश्मों में जिंदगी
जो मिली जितनी मिली जीता रहा -
उदय वीर सिंह

गुरुवार, 20 जुलाई 2017

हथकड़ी कल तक रही ....आज कंगन कैसे -

कल के युग गीत मधुर
आज क्रंदन कैसे
हथकड़ी हाथ का बंधन
आज कंगन कैसे -

कल का विषबेल तरु
आज चंदन कैसे
कल का द्रोही तेरे विचारों में
आज वंदन कैसे-

कहा था पापी संस्कार रहित
आज मंडन कैसे
अक्षम्य अपराध था जिनका
आज अभिनंदन कैसे-

कल जो रेत था नयनों में
आज अंजन कैसे
कल पीतल तुम्हें नजर आया
आज कुन्दन कैसे-

उदय वीर सिंह


जो कल थी फौलादी बेड़ी

जो पुछते थे सवाल कल 
आज वो सवाल तुमसे है 
जिसका था तुम्हें मलाल कल 
आज वो मलाल तुमसे है 
जो कल थी फौलादी बेड़ी
आज कनक कंगन हुई 
कल झटके की बात करते थे 
आज जिंदगी हलाल तुमसे है 
सँपेरों मदारियों का था ये देश
है ऐसा तुम्हारा खयाल 
पाणिनी आर्यभट्ट बराहमिहिर .
का प्रश्न  प्रहार तुमसे है -
रोटी कपड़ा मकान का रोना
सुरक्षा संस्कृति का विलाप भी 
आज सुरक्षा संस्कृति रोटी कपड़ा 
मकान का सवाल तुमसे है -
खाईं बढ़ रही है समाज में 
तुम्हारी असहनीय चिंता थी 
आज खाईं ही नहीं नफरत की 
उठी दीवाल का सवाल तुमसे है -

उदय सिंह 

मंगलवार, 18 जुलाई 2017

मेरे वीर !

मेरे वीर !
आँसू देकर क्यों रोता है 
मैंने बोये शूल तेरे पथ 
प्रसून मुझे  तूँ क्यो बोता है 
हमने रोकी राह तुम्हारी 
हमने पुछे प्रश्न सतत 
पीर तुम्हारी  संग न था 
दर्द हमारे क्यों ढोता है 
निशा हमारी तमस हमारा 
झंझावात हमारे हैं 
पथ पथरीले नियति हमारी 
पथ दीपक क्यों सँजोता है -
उदय वीर सिंह 

शनिवार, 15 जुलाई 2017

यहाँ देशद्रोही भी जवान के समतुल्य होता है -

वहाँ सरहद पर वीर जवान शहीद होता है ,
यहाँ वलिदान का मान नहीं मूल्य लगता है -
प्रश्न करते हैं कि गोली सिने या पीठ पर लगी 
यहाँ देशद्रोही भी जवान के समतुल्य होता है -
संगठन रोते हैं बुहे फाड़ धर्म-जाति के नाम पर 
बताओ शहीद परिवारों के साथ खड़ा कौन होता है......  

 उदय वीर सिंह

गुरुवार, 13 जुलाई 2017

उनहों ने राजनीति शास्त्र पढ़ा मैं कृषि विज्ञान

उनहों ने राजनीति शास्त्र पढ़ा मैं कृषि विज्ञान
वो सरकार हो गए मैं कर्जदार हो गया -
उनहों ने किया भ्रष्टाचार मैंने वाणिज्य व्यापार
वो वो सेहतमंद हो गए मैं बीमार हो गया -
करते रहे सौदा वतन का वतनपरस्त बने रहे
मैं करके वतन की हिफाजत गद्दार हो गया -
डरे घड़ियाल भी उनके रोने से सैलाब आता है
उन्हे सर्दी लगी तीमारदार सारा अखबार हो गया -
उदय वीर सिंह



बुधवार, 12 जुलाई 2017

उन्माद की आँधी क्यों चली

सोच तो है पर संकोच क्यों है 
वीर कातिल भी  निर्दोष क्यों है -
उन्माद की आँधी क्यों चली 
मासूम दिलों में असंतोष क्यों है -
इल्म का दर भी कातिलाना है 
मुर्दा भी सरफरोश क्यों है
जो वतन का है इंसानियत का 
मरने पर अफ़सोस क्यों है -
उदय वीर सिंह


बुधवार, 5 जुलाई 2017

भींग आए मन तो निथार लेना

भींग आए मन तो निथार लेना
गए पाँव लौट आएँ तो पखार लेना
आँखें नीची किए गया मुड़कर देखा
वो निश्छल प्रेम था पुकार लेना -
उलझ ही जाती हैं लटें आदतन
हृदय विशाल कर संवार लेना
बादलों पर घर बना भी लें
आँचल के वन फुहारों को उतार लेना -
चुभ जाए विरह वेदन के शूल
जिस पथ नेह आए बुहार लेना -
विनिमय हाट नहीं कि मोल हो
अधिकार लेना अधिकार देना -

उदय वीर सिंह

सोमवार, 3 जुलाई 2017

कुछ लोग चले जाते हैं तो अच्छा लगता है

कुछ लोग आते हैं तो अच्छा लगता है
कुछ लोग चले जाते हैं तो अच्छा लगता -
कुछ मौन रहते हैं अमन व खुशी के लिए
कुछ आवाज उठाते हैं तो अच्छा लगता है -
कुछ तोड़ लेते हैं रिश्ते झूठी शान में उदय 
कुछ लोग जोड़ लेते हैं नाते अच्छा लगता है -
कुछ लोग शमशान ले जाते हैं कुरीतियों को
कुछ संस्कारों का महल बनाते है अच्छा लगता है
कुछ लोग भूल जाते हैं किए अहसानों को
कुछ लोग ता-उम्र निभाते हैं अच्छा लगता है -
उदय वीर सिंह

रविवार, 2 जुलाई 2017

साधना समृद्ध हो गई है -

कागज पर लिख दी गंगा
कविता शुद्ध हो गई है -
कागज पर लिखा हिमालय
सरिता अवरुद्ध हो गई है -
कागज पर लिखा कठोर 
करुणा निशिद्ध हो गई है -
कोरी कल्पना के प्रतिमान मेरे ऊंचे हुए
चेतना प्रसिद्ध हो गई है -
कागज पर लिखी प्रतिष्ठा
साधना समृद्ध हो गई है -
लिखा G S T के बाबत तो
व्यवस्था क्रुद्ध हो गई है -
उदय वीर सिंह