रविवार, 29 अक्तूबर 2017

पीड़ा मांग रही संवेदन

रोए कौन किसकी अर्थी पर
तन जिंदा मन मरे हुए
पीड़ा मांग रही संवेदन
जिंदा भी जीवन हार गए -
चौड़ी हुई विद्वेष की ड्योढ़ी
सँकरे मंदिर द्वार हुए
स्नेह सृजन शमशान गए
दस्यु लंबरदार हुए -
उलझ गए सुलझाने वाले
आँखों के आँसू सूख गए
घात प्रतिघात में कर उलझे
बंद प्रगति के द्वार हुए -
कौन जगाए जाग्रत को
निद्रा का ढोंग रचा सोया
सुलग रही है भूख की ज्वाला
कहीं शोक मंगलाचार हुए -
उदय वीर सिंह



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