शुक्रवार, 2 मार्च 2018

विकल्प पाप या भीख की वृत्ती

ढूँढ रहा है दाने अब भी
जमा वादों के ढेरों में -
आज भी मुक्त नहीं वेदन से
बंदी लाचारी प्राचीरों में -
खुले हाथ पर खाली हैं
दिवस प्रतीक्षा में जाते
थक हार प्रश्न अंतस करता
क्या भेद पाखंड जंजीरों में -
माँज रहा है बर्तन जूठे
उत्सव में मेहमानों के
होली ईद दिवाली घर की
मना रहा है सपनों में -
सनद मिली रेशम लिपटी
टूटे छप्पर में भींग रही
दहक रही अंतस में ज्वाला
जीवन भींग रहा है नीरो में -
सपनों का उपवन जलता
मरुक्षेत्र पसरता जाता है
झीलों में बादल बरस गए
जा लक्ष्मी बसी कुबेरों में -
शिक्षा ऋण की भार शिला
नित गिरिवर सी होती है
शिक्षाविद अभियंता की सनद
लिए है खड़ा दिहाड़ी डेरों में -
मांगे रोजी पर खाली आँचल
खा ठोकर लौट कर आता है
विकल्प पाप या भीख की वृत्ती
पुछे जिंदा तस्वीरों से
उदय वीर सिंह




कोई टिप्पणी नहीं: