रविवार, 29 अप्रैल 2018

एक सौदा मर्यादा का -------- ।

एक सौदा अब मर्यादा का भी --------  
हम भूल गए हैं ज़िम्मेदारी 
बात गई है ठेके पर 
शयन भूमि पर सौदा सच्चा 
खाट गई है ठेके पर -
खोदो कुआं राह मिलेगी 
बाट गई है ठेके पर -
हँसना भी ठेके पर हो 
रात गई है ठेके पर 
दूल्हा दुल्हन की खैर करो 
बारात गई है ठेके पर -
सूना चूल्हा खाली बटलोई 
परात गई है ठेके पर 
गौरव मर्यादा की बात पुरानी 
सौगात गई है ठेके पर -
कम पड़ते हैं कर आय अंश 
इमदाद गई है ठेके पर -
आँखों का पानी मरता
लाज गई है ठेके पर
 कैसे मंजिल जा दस्तक देंगे 
लात गई है ठेके पर -
अक्षम होते तंत्र हमारे 
अब बात गई है ठेके पर -
उदय वीर सिंह




रविवार, 22 अप्रैल 2018

.... कैसे कह दोगे !

.... कैसे कह दोगे ! 
किसी के हक को ईमदाद कह दोगे 
किसी फरियाद को विवाद कह दोगे
जख्म से रिसते खून जलते वर्तमान को 
उदयआखिर कैसे इतिहास कह दोगे-
माना की जरूरत है मनोरंजन की तुम्हें
किसी के दर्द को परिहास कह दोगे
चुप हैं दहशत से भरी आंखे जिनकी
अपने इकतरफा बयान को संवाद कह दोगे -
बस न पाईं उजड़ी बस्तियाँ आज भी
शैलाब में डूबा मंजर आबाद कह दोगे
फुलझड़ियाँ कामयाबी की दस्तावेज़ नहीं
टिमटिमाते दीप को आफताब कह दोगे -
उदय वीर सिंह

रविवार, 15 अप्रैल 2018

राजपथ में ध्वज नहीं सलीब कैसी है -

गुलामी में आजादी की दरकार थी
बाद आजादी के आजादी की चीख कैसी है -
हर शख्श अजनवी हर चौक में शोर
दाता और भिखारियों की लकीर कैसी है -
दरक चुके आईने की जमीन कह रही
अक्स में उभरी वतन की नसीब कैसी है -
बनती खाइयाँ देख सहम पूछता है देश
राजपथ में ध्वज नहीं सलीब कैसी है -
उदय वीर सिंह


सोमवार, 9 अप्रैल 2018

सामान नहीं है आबरू .....

सामान नहीं है आबरू तोलता क्यों है
नेह के शब्द जाने बोलता क्यों है -
अगर तूफान से लड़ने का जज्बा खोया
कदम बरसात में अपना रखता क्यों है -
शिकायत है फिज़ाओं से अगर तुमको
घर के दरवाजे बुहों को खोलता क्यों है -
जाना दर्द किसी मजबूर का अपना
रगों में खून का दरिया वीर बहता क्यों है -
उदय वीर सिंह


रविवार, 8 अप्रैल 2018

देख कर अवसर पाला बदल लेते हैं

देख कर अवसर पाला बदल लेते हैं 
थाली देखकर निवाला बदल लेते हैं
सत्ता की दौड़ भी क्या गुल खिलाती है 
बदल लेते हैं रब,शिवाला बदल लेते हैं -
बदल लेते हैं राह हमसफर ही नहीं 
शहर और नदी नाला बदल लेते हैं 
बह जाए खून की दरिया उनकी शान 
माजी कहता है मनके माला बदल लेते हैं -
वतन ईमान असूल फर्ज अलंकार हैं 
सिर्फ वतन परस्तों के लिए बने 
कायम रहे उनकी सल्तनत बुलंदी 

विश्वास ही नहीं बहनोई साला बदल लेते हैं -

उदय वीर सिंह

गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

भारत एक सुंदर देश है

उजबेकिस्तान देश की यात्रा के दौरान चर्वाक झील में एक अवयस्क उज़्बेक बालिका ने मुझसे बात करने की उत्सुकता के क्रम में अपने हृदय उदद्गार व्यक्त किए । जो मुझे अप्रत्याशित ही नहीं अप्रतिम लगा ।
आर यू इंदिया ? Are you India ?
यस आई यम इंडियन ..Yes I am Indian
माई माम एंड टीचर से इंदीया इज बियूतीफूल कंत्री पीपल लाइव पिसफुली
एंड आई लाइक टू इंडिया आइ वांत तू गो इंडिया....
My Mom and Teachers say ,India is a beautiful country, ,people live peacefully. and I like too . I want to go India .
[उस बालिका का नाम था मुग्झारम [ मुख्तारम ] जिसने मेरे हाथ पर अपना नाम लिखा है ]
और आज मेरे मानस का द्वंद नहीं जाता कि हम उस मासूम जो उम्र के साथ विचार भी विकसित हो रहे होंगे उसके मानस में किस तरह के विचार पुष्पित कर सकेंगे कल्पना मात्र से ही हृदय सिहर उठता है।
उदय वीर सिंह



मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

गर्व से देशी की बात करें -

जरूरत है मिले -आपको भी हमको भी
आओ रोटी की बात करें -
जेब आसमानी नहीं भरी किसी की खाली है
आओ अनदेखी की बात करें-
रेशमी लिबास से रंज क्यों करना
तन नंगा है धोती की बात करें -
विदेशी सामानों का गरुर पालते क्यों हैं
गर्व से देशी की बात करें -
पैबंद को भी पैबंद नहीं मिलता सोचो
लबों पर पड़ी खामोशी की बात करें -

उदय वीर सिंह

रविवार, 1 अप्रैल 2018

पीड़ा पर बहरापन क्यों है

पीड़ा पर बहरापन क्यों है -
यश गायन पर ढ़ोल दुंदुभि
पीड़ा पर बहरापन क्यों है
रंगों पर रचते लालित्य ग्रंथ
रंग काले से बौनापन क्यों है -
झूठे वक्तव्यों का शोर बहुत
धारों में अतिशय पैनापन
सत्य संवेदनशील पथों में
दूर तलक सूनापन क्यों है -
मधुर स्वप्न के नगर चक्षु
आँखों में खारापन क्यों है
प्रगाढ़ रक्त की शिरा धमनियां
रिश्तों में पतलापन क्यों है -
पूज्य पाँव पद प्रच्छालन
अवयस्क कन्या अवतारी है
वय वयस्क पा नर्क महि
ये वैचारिक दोहरपन क्यों है -
माँ के एक आँगन बेटी है
घर दूर गई तो खेती है
धन पराया कह नहीं अघाते
मानस का संकरापन क्यों है -
राम नाम के जपने वाले
अल्लाहूअकबर कहने वाले
जब मान रहे ईश्वर की सत्ता
तो नफरत का सहरापन क्यों है
उदय वीर सिंह