गुलामी में आजादी की दरकार थी
बाद आजादी के आजादी की चीख कैसी है -
हर शख्श अजनवी हर चौक में शोर
दाता और भिखारियों की लकीर कैसी है -
दरक चुके आईने की जमीन कह रही
अक्स में उभरी वतन की नसीब कैसी है -
बनती खाइयाँ देख सहम पूछता है देश
राजपथ में ध्वज नहीं सलीब कैसी है -
उदय वीर सिंह
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