रविवार, 13 मई 2018

सरल हृदय का भाषी हूँ ......

मैं अकिंचन अक्षरहीन
नयनन की भाषा लिखना
चाह विमर्श की होती है
प्रियतम की गाथा लिखना
सरल हृदय का भाषी हूँ ,
भाव सरल भाषा लिखना ...
भाव समन्वय की गतिशील रहे
अविरल प्रवाह गति मंथर मंथर
संवाद मौन की गगन दुंदुभि
नाविक प्रयाण पथ सदा निरंतर -
स्वर प्रकोष्ठ के नाद करें
जाग्रत अनंत जिज्ञाषा लिखना -
स्पर्श मलय का अभिनंदन
होने का प्रतिपादन कर दे
यत्र तत्र बिखरे शुभ परिमल
एक बांध सूत्र सम्पादन कर दे -
बाँच सके निर्मल मन मेरा
भाष्य नवल परिभाषा लिखना .........
पुण्य प्रसून आरत यश भव की
स्नेहमयी आशा लिखना .....
सरल हृदय का भाषी हूँ ,
भाव सरल भाषा लिखना ...
उदयवीर सिंह




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